
हिमाचल प्रदेश के खूबसूरत कुल्लू घाटी में मनाया जाने वाला कुल्लू दशहरा केवल एक पर्व ही नहीं, बल्कि आस्था, संस्कृति और परंपराओं का अद्भुत संगम है। यह त्यौहार विजयादशमी के दिन से शुरू होकर पूरे सात दिनों तक मनाया जाता है। इसे यूनेस्को द्वारा अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त उत्सव का दर्जा भी मिला है।
कुल्लू दशहरे की खासियत
जहाँ देशभर में दशहरा रावण दहन के साथ मनाया जाता है, वहीं कुल्लू दशहरा की परंपरा बिल्कुल अलग है। यहां पर रावण का दहन नहीं किया जाता, बल्कि भगवान रघुनाथ जी की शोभायात्रा निकाली जाती है और सैकड़ों देवी-देवता अपने रथों पर सवार होकर इस उत्सव में शामिल होते हैं।
भगवान रघुनाथ जी की यात्रा

मेला ढालपुर मैदान में लगता है, जहाँ भगवान रघुनाथ जी का रथ खींचा जाता है। हजारों भक्त “जय रघुनाथ” के जयकारों के साथ इस दिव्य दृश्य का हिस्सा बनते हैं। यह मेला देव परंपरा और सामूहिक एकता का अद्वितीय उदाहरण है।
सांस्कृतिक झलक

इस मेले में लोक नृत्य, पारंपरिक वाद्ययंत्र, रंगारंग कार्यक्रम और हस्तशिल्प की प्रदर्शनी देखने को मिलती है। साथ ही देश-विदेश से आए पर्यटक हिमाचली संस्कृति, पहनावा और खानपान का आनंद उठाते हैं।
क्यों है खास?

कुल्लू दशहरा में करीब 300 से अधिक देवता भाग लेते हैं।यह त्यौहार सात दिन तक चलता है।यहां की परंपरा रावण दहन से अलग है।इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है।
निष्कर्ष
कुल्लू दशहरा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हिमाचल प्रदेश की पहचान भी बन चुका है। यहां आकर पर्यटक न सिर्फ उत्सव का आनंद लेते हैं बल्कि देव संस्कृति और लोक परंपराओं से भी रूबरू होते हैं।
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