
माँ नैना देवी मंदिर भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है। हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर ज़िले में स्थित यह मंदिर न केवल भक्तों की आस्था का केंद्र है, बल्कि पर्यटकों के लिए भी एक अद्भुत धार्मिक व पर्यटन स्थल है। हर साल लाखों श्रद्धालु माँ के दर्शन करने यहाँ पहुँचते हैं।
ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व

हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, इस मंदिर का संबंध सती और भगवान शिव की कथा से है। जब सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह किया, तो भगवान शिव ने शोक में सती के शरीर को उठा लिया और ब्रह्मांड में घूमने लगे। भगवान विष्णु ने शिव के क्रोध को शांत करने के लिए सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दिए। जहाँ-जहाँ सती के अंग गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ बने। माना जाता है कि सती की आँखें (नयन) इस स्थान पर गिरी थीं, इसलिए यहाँ माँ नैना देवी की पूजा होती है।
मंदिर की बनावट और स्थान

यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 1,215 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ से गोविंद सागर झील और आसपास की पर्वतमालाओं का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। मंदिर तक पहुँचने के लिए सीढ़ियों का मार्ग और रोपवे सुविधा उपलब्ध है। गर्भगृह में माँ नैना देवी की पिंडी स्वरूप में पूजा की जाती है।
धार्मिक महत्व
माँ नैना देवी को “ज्योति स्वरूपिणी” माना जाता है। भक्त मानते हैं कि माँ नैना देवी उनके दुखों का निवारण करती हैं और हर संकट से रक्षा करती हैं। खासकर नवरात्रों के समय यहाँ विशाल मेले का आयोजन होता है, जिसमें देशभर से श्रद्धालु उमड़ पड़ते हैं।
पर्यटन और आकर्षण

मंदिर के आस-पास की वादियाँ प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हैं। गोविंद सागर झील, आनंदपुर साहिब और भाखड़ा नांगल बाँध यहाँ आने वाले यात्रियों के लिए अतिरिक्त आकर्षण हैं।
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